13 अक्तूबर 2011

यह जगत है, अद्भुत परीक्षा - पत्र जीवन के लिये

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

छंदों पर बात हो और विभिन्न मत सामने न आयें, ऐसा हो ही नहीं सकता। भाई पढे-लिखे लोग ही तो विवेचना करते हैं। हरिगीतिका छंद पर भी कई सारे बिन्दु सामने आए हैं। बहरहाल, मंच का प्रयास है कि पाँच लाख चौदह हजार दो सौ उनतीस प्रकार के २८ मात्रा वाले यौगिक छंदों में से एक - इस समस्या पूर्ति में वर्णित - हरिगीतिका छंद पर ही फिलहाल काम किया जाए। एक बार छंद से प्रेम हो गया, तो बाकी काम तो आगे बढ़ते रहने का है, और वो चलता रहेगा, चलता रहना भी चाहिए। तभी तो उत्कर्ष होगा।

पहले अजित दीदी, फिर साधना दीदी और उस के बाद सौरभ जी के छंदों ने जैसे सम्मोहित कर दिया है। आज उसी कड़ी में हम साहित्य के लालित्य को गरिमा प्रदान करते भाई महेंद्र वर्मा जी के छंदों को पढ़ते हैं।




त्यौहार / पर्व

अनेकता में एकता

जिस देश में बहु-पर्व हैं, वह, देश भारतवर्ष है। 
चहुँ ओर विसरित हर्ष है, या, हर्ष का उत्कर्ष है।।
बहु सभ्यता, बहु भाषिता, बहु - वेष-भूषा-धर्म हैं। 
पर एकता-सद्भावना ही, शांति विषयक मर्म हैं।१।


कसौटी / परीक्षा

प्रयास


यह जगत है, अद्भुत परीक्षा - पत्र जीवन के लिये। 
कुछ तो सरल से प्रश्न, बहुधा, हैं - कठिन बस झेलिये।।
जो लोग होते सफल उनका, नाम जीवनमुक्त है। 
पर जो हुआ असफल, वही, आवागमन से युक्त है।२।

अनुरोध

पौधे लगाएँ

वरदान जो हमको मिला है, सृष्टि से वह जानिए। 
इस विश्व के परिआवरण का, संतुलन न बिगाडि़ए।।
अब आपसे अनुरोध है, यह - वृक्ष-वंश़ बचाइये।
ये पेड़-पौधे पूज्य हैं दो - चार और लगाइये।३।

विद्वानों का मानना है कि छंद एक फॉर्मेट होता है जिस पर विभिन्न कवियों को अपनी अपनी कल्पना के अनुसार बहुरंगी रचनाओं को प्रस्तुत करना चाहिए। छंद का मतलब किसी एक ढर्रे विशेष पर ही लिखना नहीं होता है। वरन व्यक्ति, वस्तु, वास्तु, स्थिति, परिस्थिति, देशकाल और वातावरण के अनुसार गढ़ी गईं रचनाएँ ही सार्थक सृजन का तमगा हासिल करती हैं। विविध रस और विविध विषय आधारित रचनाएँ ही साहित्य को समृद्ध करती है।

पहले कुण्डलिया और फिर घनाक्षरी छंद आधारित समस्या पूर्तियों में अपनी लेखनी के ज़ौहर दिखला चुके महेंद्र भाई ने इस बार भी जिस सरल भाषा में हरिगीतिका छंद प्रस्तुत किए हैं, वह बानगी देखते ही बनती है। बात पर्यावरण को 'परिआवरण' [परि + आवरण = पर्यावरण] लिखने की हो या फिर जीवन के अद्भुत परीक्षा पत्र की कल्पना और उस से जुड़ी जीवन मुक्ति - आवागमन के झंझट का विवेचन हो या फिर अनुरोध को पेड़-पौधों से जोड़ने वाला प्रयोग हो - आपने चौंकाने का पूरा पूरा प्रबंध किया है इस बार भी।

झाँझ-मंजीरा

सरिता जैसा प्रवाह और झांझ-मंजीरे की ताल जैसी लयात्मकता शुरू से अंत तक बांधे रखने में सक्षम है। यह लयात्मकता ही सद्य-वर्णित हरिगीतिका छन्द की विशेषता है। हरिगीतिका छंदों के उत्कृष्ट उदाहरणों में शामिल होने को आतुर इन छंदों पर आप अपनी बेबाक राय रखिए और हम फिर से तैयारी करते हैं एक अगली पोस्ट की।

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जय माँ शारदे!

17 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर हरिगीतिका छंद ||

    बधाई ||

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  2. HARIGEETIKA SHABD MEIN HEE SANGEET HAI .
    IS CHHAND MEIN PADHNAA BAHUT PRIY LAGTA
    HAI .BADHAAEE .

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  3. तीनों ही छंद बहुत सुंदर हैं, महेंद्र वर्मा जी को बहुत बहुत बधाई

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  4. तीनों छंद हर तरह से सधे हुए हैं. आदरणीय महेंद्र वर्मा जी को सादर बधाई.

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  5. बहुत ही सुन्दर छंद हैं आदरणीय वर्मा जी के ! तीनों ही एक से बढ़ कर एक हैं ! हरिगीतिका छंद को ऐसे भी रचा जा सकता है जान कर प्रसन्नता हुई ! इस मंच पर आकर बहुत कुछ सीखने के लिये मिल रहा है ! आप सभीका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

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  6. छंद का मतलब ही यह है कि जो शब्द-रचना को संगीतात्मक लय में बाँध दे ! वह तीनों ही बन्द इस दृष्टि से लय की लोच और तरलता से सिक्त हैं.
    साधुवाद !
    दीप्ति

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  7. सुंदर छंदों के लिए आभार महेन्द्र वर्मा जी का …
    … और बधाई भी !

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  8. तीन विषय और तीनों ही विषयों पर आश्‍चर्यजनक प्रविष्टि। बस इतना ही कहूंगी कि अभी मन भरा नहीं।

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  9. मेरे छंदों पर अपने आाशीषमय विचार अभिव्यक्त करने के लिए सभी छंद प्रेमी सम्माननीय साथियों के प्रति आभार ।
    नवीन जी को धन्यवाद कि उन्होंने मेरी रचनाओं को ‘मंच‘ में कृपापूर्वक स्थान प्रदान किया।

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  10. तीनों छंद बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद ...बधाई वर्मा जी !
    नवीन जी का सत्प्रयास पुष्पित-पल्लवित हो रहा है ....

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  11. संदेशपरक पर्यावरण प्रकृति प्रेम से संसिक्त छंद बद्ध प्रस्तुति .

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  12. महेंद्र भाई ने बहुत ही सहज साड़ी भाषा में छंदों को निखारा है ... बहुत बहुत बधाई ...

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  13. भारत स्वयं में एक महकुम्भ है और जीता जागता त्यौहार है --कागज़ के इम्तिहानों से ज़िन्दगी के इम्तिहान अधिक महत्वपूर्ण हैं -- ज़माना एक तेरा इम्तिहान लेगा अभी // दिये हैं तूने अभी इम्तिहान कागज़ पर --( प्रमोद तिवारी) और समष्टि की पुकार पर्याअवरण को बचाओ -- मुख सिये झेलती अपने अभिशाप ताप ज्वालायें // देखी अतीत केयुग से चिर मौन शैलमालायें --( जयशंकर प्रसाद जी --आँसू ) --बहुत सुन्दर काव्य कौशल के साथ बहुत प्रासंगिक कवितायें --सन्देश भी और आह्वाहन भी !! महेन्द्र जी बधाई !!!

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