9 अक्तूबर 2011

कुछ दोहे-सोरठे - नवीन

दोहे 

जलें दीप हर द्वार पर, मिटे अंधेरी रैन|
सब को इस दीपावली, मिले शान्ति, सुख, चैन|१|

पाकिट में पैसे भरे, आँखों में दुःख-दर्द|
बिना फेमिली ज़िंदगी, ज्यूँ सजनी, बिन मर्द|२|

अनुभव, ज्ञान, उपाधियां, रिश्ते, नफरत, प्रीत।
बिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत ।३।



सोरठे 

ऐसा हुआ कमाल, बाँहें बल खाने लगीं|
पूछ न दिल का हाल, अब के करवा चौथ में|१| 

'करवा-चन्द्र'  निढाल, करता रहा अतीत से|
'शरद-चन्द्र' तत्काल, बहन भाई का प्यार है|२|

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

7 टिप्‍पणियां:

  1. कल 31/10/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. अनुभव, ज्ञान, उपाधियां, रिश्ते, नफरत, प्रीत।
    बिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत
    बहुत सही कहा आपने

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  3. अनुभव, ज्ञान, उपाधियां, रिश्ते, नफरत, प्रीत।
    बिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत ।३।
    वाह!

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  4. सुन्दर दोहा अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकार...

    जीवन पुष्प
    www.mknilu.blogspot.com

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