13 जुलाई 2011

पैरोडी - मैं तुमको ये पोस्ट पढ़ाऊँ - मेरी मर्ज़ी

विशेष सूचना - ये पोस्ट सब से पहले मेरे ऊपर लागू होती है ....................... 

टिप्पणी किस को नहीं चाहिए, सब को ही चाहिए| मुझे भी चाहिए| जो ना-ना करते हैं उन्हें भी चाहिए भाई| टिप्पणी धर्म निभाने के लिए कई बार हम में से कई सारे लोग केजुअल टिप्पणियाँ भी करते रहते हैं, ये एक ऐसा सच है - जिसे कम से कम मैं तो झुठला नहीं सकता| पर दुख होता है जब हमारे द्वारा मेहनत और लगन से बनाई गई पोस्ट्स पर कोई केजुअल से भी आगे बढ़ कर अ-सन्दर्भित कमेंट चिपका जाता है| संभव है कभी मुझ से भी ये हो गया होवे| भाई मैं भी तो इंसान ही हूँ ना| 

'सकारात्मक विकेंद्रित विचार विनिमय' की कामयाबी की राह में ऐसी टिप्पणियाँ प्रोत्साहन कम और हतोत्साहन अधिक करती हैं| ब्लॉगिंग का आज पर्याय नहीं है| ब्लॉगिंग आज देश व्यापी मूवमेंट्स का आधार भी बनने लगी है| ब्लॉगिंग ने गली-कूचों में, अनिर्दिष्ट भविष्य के लिए अभिशप्त हो चुके - कई सारे रचनाधर्मियों को एक मंच उपलब्ध कराया है| यहाँ कई सारे अच्छे ब्लॉगर हैं, ये न होते तो आज आप मेरी इस पोस्ट को न पढ़ रहे होते| नये ब्लॉगर्स के उत्साह वर्धन से रत्ती भर भी इनकार नहीं है| अपने ब्लॉग पर दूसरों को बुलाने योग्य बनाने के लिए घुमक्कडी से भी लेश मात्र तक परहेज नहीं है - पर हाँ, इतनी कसक अवश्य है, भाई टिप्पणी कम से कम सन्दर्भ के साथ तो दो, अदरवाइज आप जैसा अच्छा पाठक पाना भी हमारे लिए कोई कम उपलब्धि थोड़े ही ना है............ 

हर दिन दर्ज़नों पोस्ट पर टिप्पणी करने वाले हम सभी के लिए सारी पोस्ट्स डीटेल में पढ़ना, उन पर चिंतन करना और अपने विचार व्यक्त करना वैसे भी मुश्किल तो होता ही है| जहाँ तक मेरा सवाल है, एक बार टिप्पणी करने के बाद मैं शायद ही पलट कर देखता हूँ कि उस पोस्ट पर आगे क्या विचार विमर्श हुआ है| फिर तो ये तो ऐसा हुआ, होठों को कुछ चौड़ाई प्रदान करते हुए गर्दन हिला कर राह चलते किसी से हाय हेलो कर दी| क्या इस लिए कर रहे हैं हम ये सब? मैं क्यूँ अपेक्षा रखता हूँ कि मुझे भी टिपण्णी शतक वीर के नाम से जाना जाए? इस का उत्तर मुझे ही ढूँढना होगा|

ऐसे विचार कई बार आते हैं मन में, आप में से कई के साथ इस तरह की बातें भी हुई हैं, फ़ोन पर, चेट के माध्यम से भी| मनोज भाई से बात करते हुए आज अचानक मूड हुआ कि चलो इस पर एक हास्य कविता [पेरोडी टाइप] पेश की जाए| और लीजिए हाजिर है ये पेरोडी आप को  गुदगुदाने के लिए| अब इस के कमेन्ट में ये न लिखना "समाज का दर्पण दिखाता................... ये गंभीर..................... आलेख...................... मेरे दिल............................. को छू ........................................... गया..........................|

ब्लॉग वर्ल्ड का नया खिलाड़ी हूँ मैं मेरे यार
मेरे दिल में जो आए वो लिखता हूँ हर बार
पढ़ना लिखना मैं ना जानूँ, ये न मुझे स्वीकार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार

............मेरी मर्ज़ी............

कविता को मैं गीत बता दूँ मेरी मर्ज़ी
गीत को पोएट्री बतला दूँ  मेरी मर्ज़ी
ग़ज़ल को अच्छी नज़्म बता दूँ मेरी मर्ज़ी
ग़ज़ल के बदले गीत पढ़ा दूँ मेरी मर्ज़ी
टिप्पणियाँ की गरज अगर तो कर लो ये स्वीकार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार


कुंडलिया को रबर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
छन्दों को मुक्तक बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
हास्य कृति, गंभीर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
व्यंग्य को फुलझड़ियाँ बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
ग़ूढ विषय में दिख सकते हैं कोमल भाव अपार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार

लंबे-लंबे लेख पढ़ूँ, ये बस में ना मेरे
कौन पढ़े इतिहास और भूगोलों के ढेरे
पढ़ लेता दो पाठ तो फिर डॉक्टर ना बन जाता
डॉक्टर बन जाता तो काहे कविता चिपकाता
इत्ती सी ये बात समझ पाते ना मेरे यार 
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार


अब इत्ती बड़ी पोस्ट पढ़ के भी किसी ने अ-संदर्भित टिपण्णी दी, तो 
तो 
तो 
तो 
तो 
क्या कर सकता हूँ मैं............... झेलना ही पड़ेगा भाई| आप के बिना इस ब्लॉग का कोई अर्थ जो नहीं है भाई!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विशेष अनुरोध:- इसे व्यक्तिगत स्तर पर लेने की सख्त मनाही है, जो मित्र ऐसा करते हुए पाए जायेंगे, हमारी अगली पोस्ट में आदर सहित स्थान पायेंगे| और जो दोस्त इसे पढ़ कर कम से कम मन ही मन मुस्कुराएंगे, हमारा दिल जीत ले जायेंगे|

इस पोस्ट के प्रेरणा श्रोत मनोज भाई हैं, ये पोस्ट सभी संभावित सकारात्मक / नकारत्मक टिप्पणियों के साथ उन को समर्पित| मनोज भाई इस का भार मैं अकेले कैसे सहन कर पाऊँगा  :))))))))))))))))))))

30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मुश्किल है टिप्पणियो के मोह से बचना
    गर बचना चाहा बच ना सकेगा
    ये ऐसा जहाँ है जिसके बिन जी ना सकेगा
    चाहे कितना भी कह लो
    मोह बंधन सब छोड दिये
    मगर ये बंधन ना टूटकर भी टूटे
    कुछ भी तुम कह लो
    कह ना सकोगे
    टिप्पणियो की संगत से बच ना सकोगे

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी मर्जी सर्वोपरि.....फिर क्या है: टिप्पणी को पोस्ट बना दो...आपकी मर्जी....:)

    हे टिपण्णी शतक वीर: उम्दा चिन्तन कर डाला इस गीत(मेरी मर्जी कुछ भी कहूँ:)) के माध्यम से....बेहतरीन!!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. मेल करू और कहू जबरदस्ती पढ़ मेरे यार
    मेरे ब्लॉग पै आकर तू भी कर ऐसे बौछार

    वाह वाह - मजेदार

    जवाब देंहटाएं
  4. कविता को मैं गीत बता दूँ मेरी मर्ज़ी
    गीत को पोएट्री बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
    ग़ज़ल को अच्छी नज़्म बता दूँ मेरी मर्ज़ी
    ग़ज़ल के बदले गीत पढ़ा दूँ मेरी मर्ज़ी... aur kya ! bahut sahi marzi

    जवाब देंहटाएं
  5. कहुंगा, मेरी मर्जी…॥

    "टिप्पणीकारों को सच्चाई का दर्पण दिखाता...................
    ये गंभीर.....................आलेख/संस्मरण जो भी है।
    आपके दिल............................. को कहीं छू गया..................लगता है।

    अब आपके प्रेरणा स्रोत को अंगूली करने वाला कह दूँ, मेरी मर्जी!! :)

    जवाब देंहटाएं
  6. नवीन भाई ... अप इस कविता पर जो आपकी मर्जी है ... कमेन्ट तो अपनी मर्जी से देने दो ...

    जवाब देंहटाएं
  7. @समीर जी :-

    चिन्तन तो हम सब कर ही रहे हैं, अपने अपने मन में| दिये की लौ भी दिख रही है| सकारात्मक परिणामों की अपेक्षा कर ही सकते हैं|

    जवाब देंहटाएं
  8. @राकेश कौशिक जी

    आप के ब्लॉग पर जामुन और बेरों का स्वाद चखा, भाई मजा आ गया| दोहों को समृद्ध किया है आपने|

    जवाब देंहटाएं
  9. @रश्मि जी :-

    मर्ज़ी तो मर्ज़ी होती है दीदी............... :)

    जवाब देंहटाएं
  10. @हंसराज जी :-

    संस्मरणात्मक आलेख पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर मुझे फिलहाल गुदगुदी हो रही है|

    जवाब देंहटाएं
  11. @दिगंबर नासवा भाई :-

    बिलकुल भाई आप भी अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं| मुझे तो ये डर था कि कोई इसे "कोमल भावों से भी भरी प्रेरणादायक उम्दा पारिवारिक कहानी" न लिख दे:))))))))))))))))))))))))

    जवाब देंहटाएं
  12. मन को गुदगुदाने और हल्का करने वाला बेहतरीन पोस्ट !
    बधाई हो ! वैसे आजकल अपनी मर्जी चल जाय तो बहुत बड़ी बात है !

    जवाब देंहटाएं
  13. पढ़ लेता दो पाठ तो फिर डॉक्टर ना बन जाता
    डॉक्टर बन जाता तो काहे कविता चिपकाता ||

    भाई ये तो सही बात नहीं है --

    बड़े-बड़े डाक्टर निरंतर कवितायें चिपकाते ही जा रहे हैं ||


    सो, इस पंक्ति से असहमत हूँ ||


    बड़ी ख़ुशी होती अब--
    कम से कम कुछ टिप्पणियां आ
    तो रही है पोस्ट पर ||

    कुछ और मजेदार पंक्तियाँ
    जिसे पढ़कर मुस्कराया ||

    1.संभव है कभी मुझ से भी ये हो गया होवे| भाई मैं भी तो इंसान ही हूँ ना|
    2.अनिर्दिष्ट भविष्य के लिए अभिशप्त हो चुके - कई सारे रचनाधर्मियों को एक मंच उपलब्ध कराया है |
    3.मुझे भी टिपण्णी शतक वीर के नाम से जाना जाए |
    4.कविता को मैं गीत बता दूँ मेरी मर्ज़ी
    गीत को पोएट्री बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
    ग़ज़ल को अच्छी नज़्म बता दूँ मेरी मर्ज़ी
    ग़ज़ल के बदले गीत पढ़ा दूँ मेरी मर्ज़ी |
    5. हास्य कृति, गंभीर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
    व्यंग्य को फुलझड़ियाँ बतला दूँ मेरी मर्ज़ी ||


    बढ़िया --
    मनोरंजक --
    और गंभीर सन्देश भी --
    बधाई भाई ||

    हाँ एक बात और
    भेजता हूँ कुछ टिप्पणीकार इधर भी ||
    शायद शतक वीर बन ही जाएँ आप ||
    मेरे यहाँ तो बुलाने से भी लोग
    "कन्नी काटकर" जाते हैं ||

    बधाई --
    इतनी लम्बी टिप्पणी हो गई
    अब कहीं न कहीं तो ऐसे ही टिपियाना पड़ेगा |

    मस्त-मस्त रचना |
    अच्छा है न
    गीत-गजल-दोहा-रुबाई कहने से बचना ||

    जवाब देंहटाएं
  14. "समाज का दर्पण दिखाता................... ये गंभीर..................... आलेख...................... मेरे दिल............................. को छू ........................................... गया..........................|
    ही ही ही ही हा हा हा हा
    चिपका दिया मैंने जस का तस ...... का कर लोगे भाई?
    वैसे मन की सारी भड़ास निकाल दी आपने नवीन भाई ..... भड़ास मेरी शब्द आपके..... कर लिया न हाईजैक ?
    मेरी भी एक गज़ल को जिसको मयंक भाई ने एप्रूव किया था, एक नामी शायर द्वारा नज़्म कहा गया था और जब मयंक भाई ने कारण जानना चाहा तो कोई जवाब नहीं मिला. ऐसा तो होता ही रहता है.
    लगे रहिये, काम आगे बढ़ रहा है, मेरी शुभकामनाएं आपके ब्लाग की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  15. इतना सब कुछ आपने कह दिया, और अब हम क्या कहें...मुझे तो बहुत सटीक और रोचक लगी, मेरी मर्ज़ी...

    जवाब देंहटाएं
  16. भैया
    कोई तो गजल और नज्म का फर्क समझा दो ||
    मैं तो हर जगह "अच्छी प्रस्तुति" से ही काम चला लेता हूँ ||

    पहले तुकबंदी का दौर चला था |

    दौर तो होते ही हैं चले जाने के लिए --
    अब कम से कम अच्छी गजल या नज्म तो लिख सकूँगा |

    जवाब देंहटाएं
  17. आपने बहुत सही फ़रमाया केवल ले और दे के उद्देश्य से की गई असमीचीन और फ़ालतू टिप्पणियां वास्तव में प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित ही करती हें...एक लाइन लिख दिया ‘वाह क्या बात है...बहूत सुन्दर रचना...बधाई’ और चिपका दिया सारी पोस्टों पर जो भी देखी भले ही पढ़ी न हो। भगवान करे कि आपका यह लेख और पैरोडी ऐसे टिप्पणीकर्ताओं के लिए सबक बने...आमीन

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत सही बात नवीन जी ....
    बिना पढ़े टिप्पड़ी करने से अच्छा है कि टिप्पड़ी ही न की जाए
    मगर बात तो यहीं आकर फँसती है ......'मेरी मर्ज़ी '

    बड़ी मस्त-मस्त प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  19. गीत लगा कैसा न बताऊँ मेरी मर्जी |
    कमेन्ट के लालच में न आऊं मेरी मर्जी |
    आप का गीत हर जगह मैं गाऊँ मेरी मर्जी |
    अपना कह कर सबै हंसाऊं मेरी मर्जी |
    अपने छोटे भाई से ना करना जी तकरार |
    बंद ना करना कभी आप टिप्पणियों की बौछार |

    मेरी मर्जी ...........................

    जवाब देंहटाएं
  20. सबकी चाहत है कि उन्हें कोई पढ़े, वही हमारा भी कर्म हो।

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत अच्छा आलेख कविता के फ़ोर्मेट में लिख डाला। (मेरी मर्ज़ी मैं इसे आलेख ही समझूं)
    और बांक़ी तो शेखर जी कह ही दिए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  22. आप सभी की मर्ज़ी सर्वोपरि है और उस का मैं तहेदिल से स्वागत करता हूँ :)

    जवाब देंहटाएं
  23. ऐसा है क्या...!!!

    मैं तो समझता था कि भाई लोग पोस्ट पढ़ने के बाद कुछ चिंतन-मनन करते होंगे, फिर टिप्पणी में क्या लिखें, यह सोचते होंगे, तब कहीं जाकर टिप्पणी टाइप करते होंगे, जैसा मैं अभी कर रहा हूं...!!!

    अब जिसकी जैसी मर्जी, पोस्ट लेखक कर ही क्या सकता है।

    जवाब देंहटाएं
  24. आदरणीय नवीन सी चतुर्वेदी जी,आपने बिना नाम लिए ही हम सबके सामने इस व्यंग्य के रूप में अपनी बात रख दी,अच्छा लगा| व्यंग्य वाकई बहुत सटीक है| यह जरुर कहना चाहूंगी कि मैं बिना पढ़े कभी टिपण्णी नहीं करती हाँ यह जरुर हो सकता है कि आपको कभी मेरी टिपण्णी भी असंदर्भित लगी हो जैसे पोस्ट के साथ साथ पूरे ब्लॉग पर भी टिपण्णी कर देना क्योकि मेरे लिए पोस्ट और ब्लॉग समान रूप से महत्व रखते है |
    यह पंक्तियाँ विशेषकर पसंद आई -१. संभव है कभी मुझसे भी ये हो गया होवे|भाई मैं भी तो इंसान ही हूँ न|
    २.जो दोस्त इसे पढ़कर मन ही मन मुस्कुराएंगे,हमारा दिल जीत ले जायेंगे|

    जवाब देंहटाएं
  25. सेवा में टिप्पणीमान चतुर्वेदी जी, हम जैसे तमाम घुमक्कड़ी टिप्पणीबाजों की आखें खोल देने के लिए धन्यवाद ! मैं आपके विशेष अनुरोध की कसम खाकर कहता हूँ कि मैंने आपकी इस व्यंग्य रचना को अक्षरशः पढ़ा है. और पूरा पढ़ने के बाद ही टिप्पणी दे रहा हूँ, फिट बैठे तो ठीक नहीं तो हमारी टिप्पणी को सवाया करके लौटा सकते हैं. आशा है मेरे बाकी बिरादर भी ऐसा ही करेंगे..

    जवाब देंहटाएं
  26. jaisa bhi comment karoo meri marzi
    aapne apna kaam kiya aapki marzi sabne pasand kiya yeh sabki marzi...............

    जवाब देंहटाएं
  27. Ha ha ha ... khoob hansi aayi aapki post padh kar.. sach kahte hain aap kabhi kabhi tippni protsahan kam hatosahit zayada karti hai.. aapne itni mehnat karke post likhi aur log likha.. good , yaa nice yaa .. kaisa ajeeb sa lagta hai..jab bhi koi post likhi jaati hai wo vicharon ke aadaan prdaan ke liye hi hoti hai..agar aapki is post ko padhkar agar kuch log bhi achchi tippni karne lage to samjhiye mehnat safal hui :-)

    जवाब देंहटाएं
  28. आपका कथन बिलकुल सही है लेकिन आपने तो इतना भयभीत कर दिया है कि अब टिप्पणी करने में भी डर लग रहा है पता नहीं आप किस श्रेणी में पटक दें ! हा हा हा ! लेकिन रचना बहुत ही रोचक बन पड़ी है इसमें कोई शक नहीं है !

    जवाब देंहटाएं
  29. कुंडलिया को रबर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
    छन्दों को मुक्तक बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
    हास्य कृति, गंभीर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
    व्यंग्य को फुलझड़ियाँ बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
    ग़ूढ विषय में दिख सकते हैं कोमल भाव अपार
    घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार
    padh ke hasi aane se koun rok sakta hai .mujhe to aanand aaya bat bat me badi bat kahna aap ko khub aata hai
    badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं