20 दिसंबर 2010

हिंद युग्म पुरस्कृत ग़ज़ल: अच्छा लगता है - नवीन

इस ग़ज़ल पर नया काम
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है।
ख़ुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है।१।

दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी।
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। २।

वक्त बदन से चिपकी स्थितियों के काँधों पर।
सुख-दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है।३।

हम भी इसी दुनिया के रहने वाले हैं यारो।
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है।४।

सात समंदर पार बसे वो, उस को क्या मालूम।
उस को फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है।५। 
 
ताज़्ज़ुब होता है हम-तुम कैसे पढ़ लिख गये यार।
अब तो पैदा होने में भी खर्चा लगता है।६।

दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है।७।

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नवंबर माह की हिंद युग्म द्वारा आयोजित यूनिप्रतियोगिता में इस ग़ज़ल को पुरस्कृत किया गया है| इस अनुग्रह के लिए हिंद युग्म परिवार का शत शत आभार|




Monday, December 20, 2010
NAVIN C. CHATURVEDI
प्रतियोगिता मे छठा स्थान नवीन चतुर्वेदी की ग़ज़ल को मिला है। हिंद-युग्म पर यह उनकी पहली रचना है। नवीन सी चतुर्वेदी का जन्म अक्टूबर 1968 मे मथुरा मे हुआ। वाणिज्य से स्नातक नवीन जी ने वेदों मे भी आरंभिक शिक्षा ग्रहण की है। अभी मुम्बई मे रहते हैं और साहित्य के प्रति खासा रुझान रखते हैं। आकाशवाणी मुंबई पर कविता पाठ के अलावा अनेकों काव्यगोष्ठियों मे भी शिरकत की है और आँडियो कसेट्स के लिये भी लेखन किया है। ब्रजभाषा, हिंदी, अंग्रेजी और मराठी मे लेखन के साथ नवीन जी ब्लॉग पर तरही मुशायरों का संचालन भी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा नयी पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने का प्रयास है।


पुरस्कृत रचना: अच्छा लगता है


तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है|
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|

दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|

वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|

हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|

सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|

मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|

शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|

वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|

दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|

17 टिप्‍पणियां:

  1. नवीन भाई को इस प्रतियोगीता में 6वां स्थान पाने के लिये भी बहुत बहुत बधाई।

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  2. सुन्दर रचना एंव पुरुस्कृत होने पर बधाई....

    "आपको बधाई देना, मुझे अच्छा लगता है"

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  3. अरविंद जी और अनुपमा जी उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|

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  4. नवीन जी,
    मेरी बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें!

    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  5. ज्ञान चंद मर्मज्ञ जी बहुत बहुत आभार

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  6. दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
    जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|

    सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
    तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|

    मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
    पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|

    kuchh nayi baateN, kuchh chote-chhote naye prayog..achchhi lagi ghazal, Badhaayi.

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  7. हिंद युग्म द्वारा इस ग़ज़ल को पुरस्कृत किए जाने पर आपको हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएं।

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  8. भाई संजय ग्रोवर जी बहुत सलाम आपकी पारखी नज़र को|

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  9. संजय कुमार चौरसिया जी एवम महेंद्र भाई जी उत्साह वर्धन और शुभकामनाओं के लिए दिल से आभार|

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  10. बहुत ही शानदार गजल कही है आपने नवीन जी। गजल का प्रत्येक शेअर बढ़िया लगा। गजल पुरस्कृत होनी ही चाहिए थी और हो गई क्योँकि इतने अच्छे भाव संजोय हैँ आपने । आभार नवीन जी !

    मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है ।

    " ना जाते थे किसी दर पे हम "

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  11. भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
    बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
    हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।

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  12. अशोक भाई और राजीव भाई उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  13. Manoj Kaushik Maharaj
    MAI BHI MANU MAI BHI AB TAK BCHCHA LAGTA HUON
    MAA KHATI HAI TU TO AB TAK BCHCHA LAGTA HI

    HARDAM KISKE AANE KI AAHAT HAI PEECHE SE
    TANHAAI ME AKSAR YE DAR SACHCHA LGTA HAI
    ...See More

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