10 अक्तूबर 2010

ठंडक बो जा, हवा गरम है - नवीन

छुप कर सो जा, हवा गरम है
चुप भी हो जा, हवा गरम है

दाग दिया, चल भला किया, अब
झटपट धो जा, हवा गरम है

आज मुझे अपने अश्क़ों से 
यार भिगो जा, हवा गरम है

गर्म रेत पर भटक न प्यारे
उपवन को जा, हवा गरम है

आज नहीं तो कल फैलेगी
ठंडक बो जा, हवा गरम है 

: नवीन सी. चतुर्वेदी 

 फालुन फालुन फालुन फा
22 22 22 2

8 जून 1996 को मुंबई के दैनिक 'दोपहर' के 'कवितांगन' में प्रकाशित

4 टिप्‍पणियां:

  1. दाग दिया, चल भला किया, अब
    झटपट धो जा, हवा गरम है

    क्या बात है सर!

    वाह!

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  2. भाई... कितनी सुन्दर लय है इन छंदों की ..और भाव भी दिल को छूने वाले.. नवीन भाई.. तुस्सी ग्रेट हो ..

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  3. भाई कमलेश जी सादर अभिवादन। आप की इस अनमोल टिप्पणी के लिए सहृदय आभार। भाई जी ग़ज़लों की यही तो ख़ासियत है कि वो छंद बद्ध हो कर ही मज़ा देती हैं। छोटी बह्र की ग़ज़लें मुझे भी ख़ासी पसंद हैं। उत्साह वर्धन करने वाले कमलेश भाई जी आप भी ग्रेट हैं। पुनश्च आभार।

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